बुधवार, 16 जनवरी 2013

कुम्भ-नहान और नेताजी !



राष्ट्रीयसहारा में २२/०१/२०१३ को नैशनल दुनिया में १७/०१/२०१३ को !
१६/०१/२०१३ को जनसन्देश में...


खेत-खलिहान से लेकर अख़बारों और बुद्धू बक्से में कुम्भ-नहान की चर्चा सुनकर हमारे मन में भी ललक जाग उठी।भारी संख्या में गठरी उठाए हुए लोग प्रयाग की ओर प्रस्थान कर रहे थे।बचपन में तुलसी बाबा की रची हुई चौपाई,’माघ मकरगत रवि जब होई,तीरथपतिहिं आव सब कोई’बार-बार मन में कौंध रही थी।सोचा,रहती जिन्दगी संगम-स्नान का पुण्य हम भी उठा लें।मन में यह भी विचार आया कि हो सकता है,भूल-चूक से हमसे कोई अपराध हो गया हो और हम पापी होकर ही निकल लें तो मुक्ति का आखिरी अवसर भी हाथ से चला जायेगा।यही सोचकर हम मेड़ई काका के पस पहुँच गए।

काका अपने खेत में पानी लगाये हुए थे।हम आवाज़ लगाये तो उन्होंने कहा कि बच्चा,वहीँ  रुको,एक घवा कट गया है,उसे बांधकर हम बस आ रहे हैं।थोड़ी देर में ही वे मिट्टी और पानी से लथपथ हमारे सामने थे।हमने बिना किसी भूमिका के प्रस्ताव दिया कि काका,कुम्भ-नहान के लिए हम जा रहे हैं,अगर मन हो तो अपनी गठरी भी तैयार कर लो। काका ने बड़े ही शांत-स्वर से उत्तर दिया,’बच्चा, आप हो आओ और हमारे लिए संगम का थोडा जल ले आना,हम उसी से नहाकर पुन्न कम लेंगे।यह नहर पूरे एक महीने बाद आया है,अगर सिंचाई न किये तो फसल चौपट हो जाएगी।’हम उनकी बात समझकर घर लौट आये और अपनी गठरी उठाकर रेल पकड़कर सीधे प्रयाग पहुँच गए।

हम स्टेशन से संगम-तट तक पैदल ही पहुंचे।रास्ते में इतनी भीड़ देखकर हमें थकावट का तनिक भी अहसास नहीं हुआ।हमने थोड़ी-सी जगह पाकर अपनी गठरी रख दी और संगम के ठंडे जल में बिना किसी हिचक के कूद गये।हमने घर के सदस्यों के नाम ले-लेकर डुबकी लगानी शुरू की और जब लगा कि अपन एकदम निष्पाप हो हाय हैं तो बाहर निकल आया।हम अपनी गठरी से कपडे निकाल ही रहे थे कि सामने अचानक नेता जी दिखाई दिए। वह अपने बाल-बच्चों सहित आये हुए थे।उन्होंने भी हमें देख लिया और सीधे हमारे पास ही चले आये।हमने विस्मित होते हुए पूछा कि नेता जी,आप यहाँ? यह स्नान-कर्म तो आम आदमियों के लिए है क्योंकि वे ही अपने कर्मों को लेकर इतना परेशान रहते हैं।जो भी पाप जैसा कुछ होता है,यही लोग करते हैं।आप तो सरकार हैं,पुण्यात्मा हैं,आपको ऐसी क्या ज़रुरत आ पड़ी ?

नेता जी ने तनिक धीमे सुर में बोलते हुए कहा,’देखिये हमारे अपने संचित पाप नहीं हैं और न ही हम उनसे मुक्ति के लिए आये हैं।आम आदमी गठरी लिए हुए है और हम बिना ऐसी गठरी के आये हैं ।ज़ाहिर है कि हम पापों की गठरी नहीं बनाते।ये तो विरोधी लोगों द्वारा कहे-सुने पर आधारित आरोप हैं जिनको किसी छोटी-मोटी गठरी में बांधकर यहाँ नहीं लाया जा सकता है।हम पूरे परिवार सहित यहाँ आये हैं क्योंकि ऐसे झूठे-मूठे आरोप हमारे भाई-भतीजों तक भी लोग लगा देते हैं।पिछले पांच सालों में विरोधियों ने आरोपों की ऐसी झड़ी लगा दी है कि अब तो हमको भी लगता है कि इन संचित पापों को इसी कुम्भ में निपटा दिया जाये।हम इसलिए भी ऐसा चाहते हैं ताकि अगले चुनाव में हम बिलकुल पाक-साफ़ होकर आम आदमी के पास जाएँ।’

हमने नेता जी को उनके इस सफाई-अभियान में सफल होने की कामना दी और एक छोटी-सी बोतल में मेड़ई काका के लिए पवित्र जल लेकर कुम्भ मेले से तुरत बाहर निकल आये। 


1 टिप्पणी:

Kewal Joshi ने कहा…

बढ़िया वृतान्त।

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