बुधवार, 9 जनवरी 2013

संघ जी और उनकी मर्यादा-संस्कृति

०९/०१/२०१३ जनवाणी में...

 
पूरा देश कड़ाके की सरदी से दो-चार था पर नागपुर अचानक गरम हो उठा।हमने भी भीषण ठण्ड से निजात पाने के लिए वहाँ का रुख किया ताकि हमें भी कुछ गर्माहट का अहसास हो सके।वैसे तो नागपुर अपने मीठे और गोल संतरों के लिए जाना जाता है पर हाल की जो गर्माहट आई थी ,उसके केन्द्र में नागपुर का संघ-मुख्यालय था।इसलिए हम इस ठण्ड के मौसम में भी वहाँ के लिए चल दिए और स्टेशन से रिक्शा पकड़कर सीधे वहीँ पहुँच गए।
हमने देखा,मुख्यालय पर भारी भीड़ जमा थी।अंदर घुसते ही हमने अजीब-सी गर्माहट का अनुभव किया ।लोग मुख्यालय के प्रांगण में ही दरी पर बैठे हुए बिछे जा रहे थे।सामने आसन पर संघ जी विराजमान थे और भागवत-पाठ हो रहा था।संघ जी बड़े जोश में दिख रहे थे।मर्यादा जी और संस्कृति जी उनके अगल-बगल नतमस्तक-सी खड़ी हुई थीं।ऐसा लगता था कि मानो उनसे कोई बड़ा अपराध हो गया हो। हम भी वहीँ पास में,एक कोने में जाकर टिक गए और ध्यान से संघ जी की ओजपूर्ण वाणी का रसपान करने लगे।वे कहे जा रहे थे ‘बहुत कठिन समय आ गया है।हम अभी नहीं जागे ,तो हमारा अस्तित्व ही नहीं बचेगा।आज हमारी संस्कृति खतरे में है क्योंकि स्त्री ने मर्यादा का साथ छोड़ दिया है।सबको समझना होगा कि उसके मर्यादाहीन होने से पूरा परिवार और समाज नष्ट हो जायेगा।इसके बाद देश भी नहीं बचेगा ।’
तभी संस्कृति जी और मर्यादा जी ने सुबकते हुए कहा ‘प्रभु ,हम दोनों आपकी शरण में हैं,पर ये ‘इंडिया’ वाले हमारा नोटिस ही नहीं लेते।अगर ‘भारत’ पर भी यह बुखार चढ़ गया तो फ़िर हम कहाँ जायेंगे ?अब हमें आप पर और आपके कारिंदों पर ही भरोसा है,आप लोग ही हमें यहाँ बचा सकते हैं’।संघ जी ने दुगुने उत्साह से बोलना शुरू किया,’हम पश्चिमी मॉडल को अपनाने की वज़ह से ये दिन देख रहे हैं।वहाँ पर ‘लिवइन’ संबंधों को मान्यता दी हुई है,’इंडिया’ वाले उसे भी यहाँ लागू करने को उतावले हैं।’भारत’ में रहने वाले हमारे कार्यकर्त्ता,बिना किसी कानूनी बंधन के,अपना मनोरंजन करते रहे हैं और इस पर कोई चिल्ल-पों भी नहीं सुनाई देती।यह सब मर्यादा के चलते होता है जिससे कभी कोई बात बाहर नहीं आती ।इस वज़ह से वहाँ कोई मोमबत्ती-मार्च भी नहीं होता ,जबकि ‘इंडिया’ में लोग थोड़ी-सी छेड़छाड़ पर तख्ती-बैनर उठाकर हाय-हाय करने लगते हैं।यह अच्छी बात नहीं है।इससे हमारी संस्कृति की प्रतिष्ठा गिर रही है।’
तभी हमें थोड़ा मौका मिला और हमने संघ जी से अनुरोध किया कि वे हमारे कुछ सवालों का जवाब दे दें तो मीडिया में उनकी धूमिल की जा रही छवि को चमकाया जा सके।वे इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए।हमने पहला सवाल किया,’आप इंडिया में ऐसे अपराध ज़्यादा होने की बात कर रहे हैं,जबकि यहीं पर ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग रहते हैं।राजधानी में तो नेता और संसद भवन भी है तो इसके अपराधी कौन हैं ?’उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के ज़वाब दिया ,देखिए आप यह क्यों भूल रहे हैं कि इण्डिया में ही ‘कैंडिल मार्च’ होता है।राजधानी में जंतर-मंतर और इंडिया-गेट भी हैं,जहाँ ऐसे अपराधों के विरोध को व्यक्त किया जा सकता है।क्या गाँव में ऐसे विरोध-स्थल बनाये गए हैं ? ज़ाहिर है कि सरकार भी जानती है कि वहाँ के लोग निर्दोष हैं,कुछ नहीं करते।
अब हमने दूसरा सवाल किया कि आपने स्त्रियों को ‘लक्ष्मण-रेखा’ न लाँघने व मर्यादा में रहने का जो फरमान दिया है,उसकी वास्तविक वज़ह क्या है ? वे भड़ककर बोले,’हमारी निगरानी में शासित भारत में देख लीजिए,स्त्री क्या,दूसरे धर्म के लोग भी मर्यादा में रहते हैं।अगर ऐसे लोगों को छुट्टा छोड़ दिया जाये तो समाज और संस्कृति नष्ट हो जायेगी।हमने मर्यादा और संस्कृति को लागू करने के लिए बकायदा नियम बना रखे हैं,जो हमारे स्वयंसेवकों के अलावा सब पर लागू होते हैं।एक हम ही हैं जो देशभक्ति का प्रमाण पत्र वितरित करते हैं।’उसी बीच हमने देखा कि उनके दरबार में कोई मुख्यमंत्री आ गए और संघ जी उनके स्वागत में लग गए।मर्यादा जी व संस्कृति जी वहीँ कोने में दुबक कर खड़ी हो गईं और हम भी बाहर निकल आए।


०९/०१/२०१३ को जन संदेश टाइम्स में....
 

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