शनिवार, 9 मार्च 2013

संसद से कुछ काम की ख़बरें !

09/03/2013, nai dunia


भारी शोर-शराबा,वॉक-ऑउट और हंगामे की खबरों के बीच संसद से अच्छी खबर आई है।बहुत दिन बाद संसद में सरकार और विपक्ष ने एक-दूसरे को सुना।इस सुखद शुरुआत का श्रेय हमारे प्रधानमंत्री को जाता है।मौन के ठप्पे को अचानक उन्होंने उतार फेंका और वे सदन में ज़बरदस्त बोले।इस बोलने की ऊर्जा का स्रोत उसके अगले दिन फूटा,जब युवराज ने साफ़ कह दिया कि वे न घोड़ी पर चढेंगे और न ही सिंहासन पर।हो सकता है,इसी बात से हमारे प्रधानमंत्री को अपनी ऐतिहासिक चुप्पी को तोड़ने का साहस मिला हो।

प्रधानमंत्री दार्शनिक अंदाज़ में विपक्ष पर टूट पड़े।उन्होंने बिना रुके,बिना थके ,विपक्ष पर केवल नकारात्मक सोचने का आरोप लगाया।उन्होंने आंकड़े देकर सदन के अंदर सिद्ध किया कि यूपीए के कार्यकाल में देश की विकास-दर एनडीए  के समय से कहीं अधिक रही ।यह बात और है कि इतनी ऐतिहासिक ग्रोथ के बावजूद देश के आम आदमी का चेहरा लगातार सिकुड़ रहा है ,पर इसको विपक्ष साबित नहीं कर पाया।प्रधानमंत्री यही नहीं रुके।उन्होंने विपक्ष पर भावनात्मक चोट भी की और बिलकुल शातिराना और शायराना अंदाज़ में।संसद में असली काम-काज तभी शुरू हुआ जब उन्होंने यह शे’र पढ़ा,’हमको वफ़ा की है उनसे उम्मीद,जो नहीं जानते वफ़ा क्या है?’

सुनने वालों को तो पहले लगा कि प्रधानमंत्री अपनी निजी दर्द बयान कर रहे हैं क्योंकि उनकी वफादारी किसके साथ है,यह सब जानते हैं।पर विपक्ष की नेता ने इसे अपने ऊपर लिया और सरकार के हर कदम की तरह इसका भी जवाब देना ज़रूरी समझा।उन्होंने आक्रामक तेवर अख्तियार करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री जी के एक शे’र का उधार नहीं रखेंगी,बदले में एक शे’र की उधारी और चढ़ा देंगी।यहाँ विपक्ष की नेता ने इस तथ्य को पूरी तरह से नज़रंदाज़ किया कि देश पर पहले से ही काफ़ी उधारी चढ़ी हुई है।बहरहाल,उन्होंने भी शेरो-शायरी के मजमे में अपनी तरफ़ से ये शे’र पढ़ा,’कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी,यूँ ही नहीं कोई बेवफा होता’।इसके बाद तो पूरा माहौल ही बदल गया।उन्होंने दूसरे शे’र में वफ़ा और ज़फा दोनों को घसीटते हुए तालियाँ बटोरी।

इस सुखद माहौल का फायदा उठाते हुए विपक्षी दल के नव-निर्वाचित अध्यक्ष जी भी बोले ।उन्होंने कहा कि वे प्रधानमंत्री जी के बोलने से बहुत प्रसन्न हैं।आखिर उन्होंने नौ साल बाद अपना मौन तोड़ा है।इसके बाद वे भी दार्शनिक अंदाज़ में बोले कि तेल खत्म होता हुआ दिया अचानक बड़ी ज़ोर से कुछ पलों के लिए टिमटिमाता है,उसके बाद उसकी लौ शांत हो जाती है और इसी तरह आने वाले समय में यह सरकार भी निष्प्राण हो जायेगी।दिये की तरह इसका भी तेल खत्म हो गया है।उन्होंने आगे यह नहीं कहा कि तेल का ड्रम और कुप्पी लिए वे तैयार बैठे हैं।इसकी वज़ह यह भी हो सकती है कि इसे लोग गंभीरता से ले लेते और उनका शायराना मूड खराब हो जाता।  

सदन में बैठे लोग कुछ समय के लिए भूल गए कि वे वहाँ बैठे हैं जहाँ अकसर माइक फेंके जाते हैं,हाथापाई होती है और बिल फाड़े जाते हैं।ऐसे माहौल के लिए निश्चित ही सत्तापक्ष व विपक्ष बधाई के पात्र हैं।इसके लिए फागुन की उपस्थिति को किसी प्रकार से दोषी नहीं कहा जा सकता है।चाहे कारण जो भी रहे हों,कम-से कम इस बहाने संसद में कुछ काम की बातें होने की खबर आई।चर्चाकारों को टीवी चैनलों पर बोलने का विषय मिला।इससे आम आदमी में यह सन्देश बिलकुल नहीं गया कि भंग होने से पहले संसद अपनी उपस्थिति का भान करा रही है।

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