गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी !


 

 
04/04/2013 को दैनिक मिलाप में !

 


08/04/2013 को कल्पतरु एक्सप्रेस में !
चुनावों के सन्निकट आते ही सन्निपात में पड़ी देश की मुख्य विपक्षी पार्टी अचानक सक्रिय हो उठी। पार्टी अध्यक्ष ने ढेर सारे विमर्श किए,कई तरह के मेनू खंगाले,तब कहीं जाकर ताजा चुनावी-व्यंजन तैयार हुआ। इसमें हर तरह के मसाले और तड़के का समायोजन था। हाई-प्रोफाइल समिति के बन जाने के बाद इसकी पहली बैठक आहूत की गई जिसका मुख्य एजेंडा था कि आगामी चुनाव में पार्टी किस चेहरे के साथ चुनाव में उतरे। इस बैठक से देश से ज़्यादा पार्टी की दशा और दिशा तय होनी थी,इसलिए इसमें सभी महत्वपूर्ण चेहरे शामिल हुए । अध्यक्ष जी के आवास पर ही एक बड़े पंडाल के नीचे केसरिया दरी बिछा दी गई । बीच में एक कुर्सी रखी गई ,जिस पर आगामी चुनावी-चेहरे को बैठना था ।पंडाल के दायें-बाएं टीवी स्क्रीन लगी हुई थीं।

अध्यक्ष जी ने इसी बीच औपचारिक बैठक की घोषणा कर दी। उन्होंने कार्यवाही शुरू करते हुए बताया कि आने वाले चुनावों में पार्टी को प्रधानमंत्री पद मिलने की घोर आशंका है,इसलिए इच्छुक लोग अपनी दावेदारी पेश करें । अध्यक्ष जी ने व्यवस्था दी कि कार्यक्रम की शुरुआत दाईं ओर से होगी,इसलिए प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए उसी तरफ से एक आवाज़ आई । ’मैं नेता-प्रतिपक्ष हूँ। सरकार बदलने पर स्वाभाविक रूप से मेरा ही दावा बनता है। वैसे भी देश की जनता स्वराज चाहती है और  स्वराज के आने पर शुचिता अपने आप ही आ जायेगी । इसलिए इस पद पर मेरी प्रबल दावेदारी है ।’

उस आवाज़ के शांत होने के बाद एक जोशीले नेता खड़े हुए। उन्होंने कहा,’इस देश की अधिसंख्य जनता खेल--प्रेमी है। क्रिकेट और राजनीति दोनों हमारे प्रिय खेल हैं। देश में इस समय अपराधों की भी बाढ़ है और एक कानून-विशेषज्ञ होने के नाते मुझे इन अपराधों का मनोविज्ञान समझ में आता है। इस लिहाज़ से इस पद के लिए मैं कहीं अधिक फिट हूँ। ’ अचानक परदे पर केसरिया पगड़ी पहने थ्री-डी चेहरा उभरा, जिसने घोषणा की ,’’अगला उम्मीदवार निर्विवाद रूप से मैं ही हूँ। मीडिया से लेकर गिनीस बुक तक मेरे चर्चे हैं। मैंने अभी-अभी अमेरिका वालों को अपने दर्शन दिए हैं,जबकि सारी दुनिया उनके दर्शन करना चाहती है। मैं छोटे-मोटे खेल नहीं खेलता,मेरे पास गेमप्लान है। प्रदेश की तरह पूरे देश में हम खुल के खेलेंगे । हमारे पास नेटवर्क है,समझ है, सोच है। ’

तभी पास में बैठे एक बुजुर्ग नेता उठकर बोलने लगे ,’पर भाई ! मेरे पास ज़्यादा समय नहीं है। मैंने देश व पार्टी को बहुत कुछ दिया है। देश में रथ चलाने का श्रेय मुझे ही जाता है। जिन्ना की तरह मैं सेकुलर भी हूँ । गहरे अनुभव और आशावाद का मैं दुर्लभ उदाहरण हूँ। प्रधानमंत्री बनने पर दावेदारी मैंने छोड़ी भी नहीं,फ़िर कैसे इतने लोग सामने आ गए ?’

चुनावी-चिंतन की बैठक अचानक गर्म हो उठी। मजबूरन अध्यक्ष जी को हस्तक्षेप करना पड़ा। वे कहने लगे,’कोई यह मत सोचे कि अध्यक्ष बनने से उसकी दावेदारी खत्म हो जाती है। दरअसल ,जब कोई सहमति नहीं बनती है तो वही अंतिम विकल्प बचता है । पार्टी और देश में से एक को चुनने के समय मैं देश को चुनना ज़्यादा पसंद करूँगा। इसलिए आप लोग आम सहमति से मुझे ही यह दायित्व सौंप दें। ’अध्यक्ष जी के बीज-वक्तव्य के बीच में ही किसी ने पंडाल की बत्ती गुल कर दी। चारों तरफ अँधेरा पसर गया था ।टीवी स्क्रीन पर अब केवल थ्री-डी वाली केसरिया-आकृति हुंकार भर रही थी ।

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