बुधवार, 19 जून 2013

हम सिर्फ़ धोखा खाते हैं !


.'जनसन्देश टाइम्स' में १९/०६/२०१३ को !
 

 

‘हमने फ़िर धोखा खाया जी,एकदम सेकुलर टाइप का।’

‘यह सिलसिला कब से चल रहा है ? मतलब, क्या यह आपका परम्परागत स्वाद है ?’

अजी,धोखा खाना तो जैसे हमारे जनम के साथ से ही जुड़ गया है।हम लगातार नियमित रूप से इसे बड़ी शालीनता से खाते आ रहे हैं।आज़ादी के बाद से ही जनता बराबर हमें धोखा दे रही है। हमारा साथ पाकर राजा मांडा कुर्सी पर बैठे,बदले में धोखा मिला।हमारी तेरह-दिनी सरकार एक वोट से धोखा खा गई।बाद में जब हम मजबूती से आए तो पाकिस्तान से कारगिल में धोखा खाया।बहिनजी ने उत्तर प्रदेश की सत्ता में ज़बरदस्त धोखा दिया।अभी ताजा धोखा बिहार से खाकर उठे हैं ।हम तो खीर खाने बैठे थे,पर बीच पंगत से ही जबरन तीर खिलाकर उठा दिया गया ।इनमें से अधिकतर बार हमें सेकुलर-तीर से ही मारा गया है ।’

‘लेकिन जब कई बार धोखा खा चुके हो,तो संभलते क्यों नहीं ? तुम्हारी सेहत तो जस की तस है ।”

‘अब क्या बताएँ ? हमारे बंदे अभी भी अनुभवहीन हैं।उनको दूसरों से धोखा खाने का ही अनुभव मिला है, खिलाने का नहीं।हम लोग इस मामले में बड़े ही अंतर्मुखी हैं।जब भी धोखा करने की हुमक उठती है,अपनों से ही कर लेते हैं।इतिहास गवाह है कि हमने अपने इष्टदेव से धोखा किया,पर मजाल है कि दूसरों को धोखा दें।इसी क्रम में हमने अभी अपने बुजुर्ग नेता पर भी यह प्रयोग कर लिया।हमें दूसरों के साथ ऐसा करने का मौका जनता ने ज़्यादा दिया ही नहीं।हम तो उसके साथ भी ऐसी सेवा करने को उतावले हैं क्योंकि हम उसे अपना ही मानते हैं।’

‘आप धोखा खाने का इंतज़ार ही क्यों करते हो ? और कुछ खाने का विकल्प क्यों नहीं खोजते ?’

‘देखिए,हमें धोखे खाने का शौक नहीं है,न हमने अपने मुँह बंद रखे हैं।हम और चीज़ें खाने के इंतज़ार में अपना मुँह खोलते हैं पर दूसरे लोग हमसे जल्द सक्रिय हो जाते हैं।जिनके हाथ में सत्ता होती है,उनके खुले मुँह में टूजी,कोयला,पुल और लंबी सड़कें तक समा जाती हैं, इस तरह धोखे के लिए इसमें गुंजाइश ही नहीं होती ।अब सत्ता आए तब ना ?फ़िलहाल,खुला मुँह देखकर तो केवल धोखा ही घुसने की हिम्मत दिखा रहा है।’

‘इस धोखे का बदला आप किस तरह ले रहे हैं ? इसकी कोई कार्ययोजना है आपके पास ?’

‘बिलकुल जी।अपने कार्यकर्ताओं के लगातार प्रयास के बाद भी हम धोखों से उबर नहीं पाए हैं।जिससे ये बेचारे बड़े दुखी हो गए हैं।इससे निपटने के लिए हम विश्वासघात-दिवस मना रहे हैं और यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होगा।हम अगले चुनावों तक ऐसे दिवस नियमित रूप से मनाते रहेंगे।जो लोग सत्ता से मलाई निकालकर हमें मट्ठा पीने पर मजबूर कर रहे हैं,उनको यह जनता ख़ूब पानी पिलाएगी।साथ ही हम अपने कार्यकर्ताओं को इस बात का भी प्रशिक्षण देंगे कि वे धोखे के प्रयोग को अपनों तक ही सीमित न रखें;इसे विस्तार दें,ताकि विरोधियों की तरह हम भी और कुछ खा सकें।’


'नेशनल दुनिया ' में २१/०६/२०१३ को !


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