मंगलवार, 6 अगस्त 2013

हम दागियों के साथ हैं !


इस समय ‘लागा चुनरी में दाग छुटाऊँ कैसे’ गाना रह-रहकर याद आ रहा है ,साथ ही उसकी निरर्थकता भी। कभी दाग लगने को लेकर बड़ी चिंताएं और आशंकाएँ व्यक्त की जाती थीं,दागियों का जीवन नर्क  बन जाता था । आज़ादी के बाद हमारे देश ने और क्षेत्रों की तरह दाग छुटाने के मामले में भी  उल्लेखनीय प्रगति की है। पहले दागी अपने दामन से मुँह को छिपाने का असफल प्रयास करते थे,पर नए दौर में  छाती-ठोंक कर टैटू की तरह दाग दिखाते हैं। दरअसल,जब से दागी होना कला और कुशलता में शुमार हुआ है,हमारे समाज में मुँह छिपाने वालों की संख्या बेहद कम हुई है। ऐसे में अल्पसंख्यक हो रही बेदाग-प्रजाति से कभी-कभार सत्ता और राजनीति को खतरा हो जाता है पर हमारा लोकतंत्र बहुत परिपक्व और मज़बूत हो चुका है । वह अब सत्ता और राजनीति के दाग भी इस विलुप्त हो रही प्रजाति के मत्थे मढ़कर अपनी उजास बढ़ा लेता है।

हाल में देश के बड़े न्यायालय ने दो साल की सजा पाए माननीयों को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया,साथ ही ताकीद भी की कि यदि ऐसा कोई सांसद या विधायक है तो उसकी सदस्यता समाप्त समझी जायेगी। न्यायालय ने हमारे लोकतंत्र को समझने में ज़रा सी चूक कर दी। उसे यह समझना चाहिए कि यदि ऐसा हुआ तो फिर देश को कौन संभालेगा,उसकी संसद तो वीरान हो जायेगी। जब माननीय ही संसद में नहीं घुस पाएंगे तो कानून कौन बनाएगा ?बिना कानून के न्यायालय भी क्या करेगा ? माननीयों का संसद-प्रवेश वैसे ही है जैसे पुजारियों का मंदिर जाना। अब भला बताओ,बिना पुजारी के पूजा कैसे होगी ? भक्तों के लिए प्रसाद कौन बाँटेगा ?

ऐसी आपात-स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने यह तय किया है कि देशहित और जनहित में वह कानून सुधारेगी। प्रसन्नता की बात यह है कि इसमें भयंकर सर्वानुमति है। हर दल देश-सेवा करने को आतुर है और इस काम में जो भी बाधक बनेगा,उसको ठीक कर दिया जायेगा। यदि कोई अपराध क्षेत्र से राजनीति में आया है तो उसका पुनर्वास करना सरकार की प्राथमिकता है। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो सोचो,गरीबों के लिए योजनायें कौन बनाएगा,उनकी सब्सिडी का क्या होगा ?सरकार की सोच है कि जो सेवा करता है,दाग उसी पर लगता है,ठीक उसी तरह जैसे होम करते हाथ जलते हैं।

हम तो सरकार को यह सुझाव देते हैं कि वह संसद और विधानसभाओं की पात्रता में भी लगे हाथों संशोधन कर दे। इसमें वे ही लोग चुनकर आएँ जो चुन-चुनकर खाने और मारने में कुशलता रखते हों। आम आदमी एकठो रूमाल तो सहेज नहीं पा रहा ,बड़े-बड़े दाग क्या ख़ाक धोएगा ?विधायिका की सदस्यता तो पारसमणि के समान है,जिसे छूकर पत्थर भी कंचन हो जाता है। ऐसे में दागी नेता भी तपे-तपाये होते हैं और हमें इनकी शुद्धता पर प्रश्नचिह्न लगाने का कोई अधिकार नहीं है ।  


'जागरण आई नेक्स्ट ' में 'खूब-कही '6/08/2013 को
 
 

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