गुरुवार, 21 नवंबर 2013

चाय वाले साहब ही ठीक हैं !


Welcome To Jansandesh  Times: Daily Hindi News Paper
जनसंदेश में २१/११/२०१३ को

आखिर इस देश के लोगों को क्या हो गया है ? अगर एक चाय वाला साहब बनकर लाल किले पर चढ़ना चाहता है,तो क्यों कुछ लोग आसमान-पाताल एक किये हैं ? बड़े-बूढ़ों को धकेलकर यदि वह मंचासीन होना चाहता है तो इसमें गलत क्या है ? हमारे देश में ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं,जिन्हें किसी गरीब का सुख देखा नहीं जाता।ऐसे ही लोगों को परसंतापीकहा जाता है।हमारे लिए तो बड़े फख्र की बात होगी,जिस दिन चाय वाला देश का साहब बन जायेगा ।इससे खाली बैठे कारिंदों और पुलिस वालों को भी ढंग का काम मिल जायेगा और वे आम आदमी की सुरक्षा के लिए दिन-रात उसके पीछे लगे रहेंगे ।ऐसे में साहब और उसके बंदे की नीयत पर शक करना कतई मुनासिब नहीं है ।सीधी बात है कि एक चाय वाले का साहब बनना कइयों को नागवार गुजर रहा है।

लोग बहुत नादान हैं।उन्हें सोना खोदने और सपने बेचने वालों पर तो भरोसा है लेकिन एक  चाय बेचने वाले की क्षमताओं पर संदेह हैं।मयूर-तख़्तपर उसका दावा सामने आते ही स्वयंभू शहजादे का भविष्य डगमगाने लगा है ।दिक्कततलब  बात तो यह है कि परसंतापीलोग अब उस तख़्त में नुकीले बयानों की कील चुभो रहे हैं।भले ही देश की बागडोर थामने के लिए इतिहासकार होना ज़रूरी न हो पर चाय के इतिहास का अध्ययन करने पर तो रोक नहीं है।कहते हैं कि नामालूम-सा यह कड़क उत्पाद इंग्लैंड से अंग्रेज़ अपने साथ लाए थे।इस तरह चाय का कारोबार अंतरराष्ट्रीय ब्रांड से जुड़ा हुआ है।आज बाज़ार में उसी चाय की डिमांड है,जिसका ब्रांड दमदार और ग्लोबल हो ।यह आप पर निर्भर है कि आप टाटा की जागो रेपसंद करते हैं या बाघ-बकरी जैसी एक घाट पर लाने वाली समाजवादी चाय ?यदि कोई ग्रीन-टीपीने की कसम ही खा चुका है तो अलग बात है,पर ऐसों की संख्या कितनी है ?फ़िलहाल,तुलसी,अदरक,वंजारा और साहिब जैसे नए-नए फ्लेवर की चाय परोसी जा रही है ।मीडिया और कार्पोरेट ने भी सबको आश्वस्त किया है कि यही चाय मुर्दनी वाले चेहरों पर ताजगी ला सकती है।

भूले-बिसरे नायकों पर टॉर्च मारी जा रही है।महापुरुष चुनाव के समय उधारी पर चल रहे हैं।लौहपुरुष को उबारने के लिए लोहा लिया जा रहा है तो बापू को मोहन लाल के रूप में गढ़ा जा रहा है।देश के इतिहास में यह पहली बार होगा कि सत्ता के लिए नया  इतिहास लिखने की होड़ मची है ।इस इतिहास का अवलोकन किसी विश्वविद्यालय या स्कूल के पाठ्यक्रम में नहीं,बल्कि विशेष शाखाओं में किया जा सकता है । सभाओं और रैलियों में लोगों को चाय की ताजगी और भविष्य की बानगी दिख रही है।चाय बेचने वाले का दावा देश पर तब और पुख्ता हो जाता है,जब यह तथ्य सामने आता है कि उसने तो चाय ही बेच रखी है,जबकि दूसरे लोग देश बेचने में लगे हैं।जब बिना किसी अनुभव के कोयला,स्पेक्ट्रम,तोप,सब कुछ बेचा जा सकता है तो चाय बेचकर और बड़ी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। इससे साहब और उनके बन्दों को तगड़ी स्फूर्ति मिलेगी,इसलिए हमारी नज़र में देश-सेवा के लिए चाय और बन्दे वाले साहब की प्रोफाइल ज्यादा दमदार है।

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया सम सामयिक प्रस्तुति ..
सब सम्भव है मेरे भारत में ....
जय हिन्द!

संतोष पाण्डेय ने कहा…

चाय वाले की दावेदारी की तरह दमदार लेख।

चुनावी-दौरे पर नेताजी

मेरे पड़ोस में एक बड़का नेताजी रहते हैं।आमतौर पर उनकी हरकतें सामान्य नहीं होती हैं पर जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई , उनकी...