शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं :)



कल शाम को नेताजी हमारे मोहल्ले में थे। हमने उन्हें अपनी परेशानियों की एक लम्बी सूची थमाई तो बोलने लगे,’चिंता मत करिये,सारी समस्याएं खत्म होने के कगार पर हैं । आप यहाँ  अपनी समस्याओं को लेकर परेशान हैं,जबकि हम तो पूरे देश में बदलाव लाने जा रहे हैं।भरोसा रखिये, चुनाव बाद सब कुछ बदल जायेगा ’। हमने नादानी वश वैसे ही पूछ लिया,’इस बार आपका ‘घोषणा-पत्र’ देर से आया है।ऐसे में हम इसे कब पढ़ेंगे और समझेंगे ? ’ नेताजी ने मुस्कुराते हुए कहा,’लगता है आप कुछ पढ़ते-लिखते या सुनते नहीं।हर जगह अबकी बार,अबकी बार की गुहार लग रही है,यह हमारी तरफ से घोषणा ही तो है।हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे जो कह रहे हैं,वही हमारा घोषणा-पत्र है।अबकी बार वे स्वयं ही आ रहे हैं इसलिए इस पर चर्चा करना ही निरर्थक है।‘हमने बीच में ही टोंका,’मगर घोषणा-पत्र तो ज़रूरी होता है ना ?’ नेता जी रहस्य खोलते हुए बोले,’घोषणा-पत्र तो उनके तैयार होते हैं,जिनको चुनाव जीतने की ज़रूरत होती है। हम तो पहले ही जीत चुके हैं। रही बात काम की,उसकी चिंता आप मत करें,आप तो बस हमें मत दें। हमारे प्रयासों से अच्छे दिन आने वाले हैं।’
हम अभी भी पूरी तरह नेता जी के वशीकरण-मन्त्र से बचने की कोशिश में लगे थे,सो पूछ लिया,’मगर,चुनाव बाद आप अपनी बातों से मुकर भी तो सकते हैं ?’देखिये,जिन्होंने साठ सालों से लिख-लिख के कुछ नहीं किया,उनका आपने क्या कर लिया ? हमने जब यह घोषणा कर दी है कि वे आने वाले हैं तो आपको मानना ही पड़ेगा। ठीक इसी तरह,अगर हमने कहा है कि अच्छे दिन आने वाले हैं तो मान लीजिए । और कोई विकल्प भी तो नहीं है आपके पास‘,नेता जी ने अर्थ-विन्यास करते हुए कहा। हम अंततः अपनी सूची को कूड़ेदान में फेंककर ’अच्छे दिन आने वाले हैं’ का जाप करते हुए घर लौट आये और चादर तानकर सो गए।

सुबह बिस्तर से उठे,तो देखा कि पूरा माहौल बदला-बदला सा लग रहा है । घर हो या बाहर,चौतरफ़ा बहार छाई हुई है। सब्जी मंडी मंद पड़ी है और शेयर बाज़ार मुँह उठाये ऊपर की ओर भाग रहा है। कल तक ‘मँहगा-मँहगा’ रोने वाली सूरतें आज औरों को ‘कैसे खुश रहें’ का मन्त्र दे रही हैं। बात-बात में भ्रष्टाचार को गरियाने वाले ऐसे इत्मीनान कर बैठे हैं,जैसे भ्रष्टाचार कभी समस्या थी ही नहीं । दादी-नानी की कथा के मुताबिक ‘जइसे उनके दिन बहुरे,वइसे हम सबके भी बहुरें’ यथार्थ रूप में घटित होता दिख रहा है। सोशल मीडिया,अख़बार,रेडियो,टीवी में,बस और मेट्रो में सर्वत्र मुनादी पीटी जा रही है,’अच्छे दिन आने वाले हैं’।
इस सबका असर यह हुआ है कि सबके अंदर फुल कॉन्फिडेंस आ गया है। यहाँ तक कि हमारी श्रीमती जी भी इस जाप से इतना प्रभावित हैं कि वे अब बात-बात पर हमें कोसती नहीं हैं।और तो और,वे गैस वाले या सब्जी वाले की बुराई भी नहीं कर रहीं। उन्हें भी लगने लगा है कि बस, कुछ दिनों की ही तो बात है,‘अच्छे दिन आने वाले हैं’।

जनसन्देश टाइम्स में 10/04/2014 को प्रकाशित
 

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