मंगलवार, 1 जुलाई 2014

ज़रूर आएँगे अच्छे दिन !


आज बहुत दिनों बाद अच्छेलाल जी दिखाई दिए।हम कबसे उनसे मिलने की फ़िराक में थे पर वो थे कि पकड़ में ही नहीं आ रहे थे।आज भी हमें देखकर उन्होंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी पर हम भी ठहरे पूरे घामड़,सो दौड़ लगाकर उन्हें धर ही लिया।अच्छेलाल जी हमें पास पाकर हल्के से मुस्कराए और हम कुछ कहते कि उससे पहले ही बोल पड़े,’इस समय बहुत जल्दी में हूँ।पहली फ्लाइट पकड़नी  है।आप तो हमारे अपने हैं,कभी भी मिल लेंगे।’
हमने भी आव न देखा ताव, जवाबी हमला बोल दिया,’जल्दी में तो हम भी बहुत हैं भाई ! आपने ही थोड़े दिन पहले नगाड़ा बजाकर ऐलान किया था कि आपके आने भर से ही अच्छे दिन आने वाले हैं पर मुए दिन तो पहले से और खराब हो गए।अब आप अच्छे दिनों के इंतजार को ‘अच्छे सालों’ में कन्वर्ट कर रहे हैं।इससे ज्यादा बुरे दिन क्या होंगे कि हमेशा बोलते रहने वाले आपने अपने होंठ सी लिए हैं।हम तो आपके पहले वाले हैं ,फिर भी मिलने से क्यूँ कतरा रहे हैं ?’
अच्छेलाल जी अचानक गम्भीर हो गए।सड़क किनारे बनी पुलिया में ही बैठ गए और हमें भी बैठने का इशारा किया।आसमान की ओर देखकर गम्भीर हो गए और कहने लगे,’मौसम और नेता बहुत बेचारे होते हैं।इन्हें अपने बदलाव का स्वयं भी पता नहीं चल पाता।मौसम कब गर्म होकर बरसने लगे  और नेता कब बेशर्म होकर पलटने लगे ,यह किसी को नहीं पता।मौका देखकर कदम उठाने पड़ते हैं।अच्छे दिनों के लिए आप नाहक परेशान हैं।बीमारी बहुत बड़ी है यह  हम जानते थे पर उसकी दवा कड़वी होगी,यह बाद में पता चला।अब इस काम में कुछ महीने या साल तो लगेंगे ही।युग-परिवर्तन करना है तो युगों तक का भी समय लग सकता है ।इतना इंतजार तो बनता है जी।’
हम अब भी ढीले नहीं पड़े थे।अगला सवाल दाग दिया ‘क्या आपको पहले नहीं पता था कि बीमारी की दवा कड़वी होती है ? अगर आप पहले से बताकर रखते तो हम अपने मुँह को एडवांस में चीनी की बोरियों से पाट देते पर अब तो वह भी कड़वी हो गई है ।ऐसे में तो हमें बुरे दिन ही अच्छे लगने लगे हैं।’
अच्छेलाल जी अचानक खड़े हो गए;कहने लगे,’देखिये हमें दवा के स्वाद का पता तो तब चलता जब हम इसे चखते।हमारी मुश्किल है कि हमें ऐसी कोई बीमारी ही नहीं होती जिसमें ये कड़वी गोलियाँ खानी पड़ें।कुर्सी पाते ही बाय डिफ़ॉल्ट हम दुनिया भर की बीमारियों और दुःख-दलिद्दर से दूर हो जाते हैं।आप ऊपर वाले पर भरोसा रखें,अच्छे दिन ज़रूर आयेंगे।वैसे भी, बड़ी आफत आने के बाद पिछली वाली आफत राहत जैसी लगती है।इसी फार्मूले पर हम लगातार अमल कर रहे हैं।’

इतना कहकर अच्छेलाल जी धूल उड़ाते हुए अपनी नई जगुआर से एयरपोर्ट की तरफ भागे।हम वहीँ सड़क पर खड़े होकर शाम वाली बस का इंतजार करने लगे, पर दूर-दूर तक कोई भी बस दिखाई नहीं दे रही थी।

'प्रजातंत्र लाइव' में 01/07/2014 को प्रकाशित 

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