गुरुवार, 27 नवंबर 2014

ज्योतिषी जी और हमारी गृहदशा !

जैसे ही घर से कार्यालय के लिए निकला कि पता नहीं कहाँ से मोटी-काली बिल्ली मेरा रास्ता काट गई।ऐसा लगा,जैसे वो बस मेरे ही इंतजार में बैठी थी।मेरे पड़ोसी गुप्ता जी दस मिनट पहले ही निकले थे,नासपीटी तभी अपने बाहर निकलने का मुहूर्त निकाल लेती ! उसका रंग तो काला था ही,आँखें भी गोल-गोल,बड़ी-सी।देखकर मैं तो जगह पर ही स्टेचू हो गया।सोच ही रहा था कि क्या करूँ,आगे जाऊँ या घर लौटकर पानी पीकर मुहूर्त दुरुस्त करूँ,तभी मोबाइल की घंटी बज गई।कार्यालय से शर्मा जी का फोन था।मैंने किसी आशंका के डर से फोन ही नहीं उठाया।घर वापिस लौट पड़ा।

इतनी जल्दी घर में मुझे फिर पाकर श्रीमती जी परेशान हो गईं।मैंने उनसे एक गिलास पानी माँगा तो वे चिंतित होकर कहने लगीं-क्या बात हो गई ? ब्लड-प्रेशर फिर से बढ़ गया क्या ? मैंने बिल्ली वाली बात उन्हें बताई तो लगा जैसे उन्हें दिल का दौरा आ गया हो।वे बड़बड़ाने लगीं-‘मैंने कई बार आपको कहा है कि हमारी गृहदशा इस समय ठीक नहीं चल रही है पर आप सुनते कहाँ हैं ? ज्योतिषी नत्थूलाल जी से पिछले सप्ताह ही बात हुई थी।वो कह रहे थे कि किसी ने हमारे परिवार पर कुछ कराया हुआ है,इसी से मुसीबतें हमारी ओर दौड़ी आ रही हैं।आज शाम को पंडित जी से मिलते आना।’
मैंने पानी का गिलास लेने के लिए उनकी ओर हाथ बढ़ाया पर यह क्या...वह सीधे धरती पर धड़ाम ! अब तो मुझे भी लगने लगा कि ज़रूर कोई प्रेतछाया हमारे परिवार के पीछे पड़ी है।मैं तुरंत ही पंडित जी के यहाँ भागा।पंडित जी पत्रा खोले बैठे जैसे मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे।मुझे देखते ही बोले-वत्स,तुमने बहुत देर कर दी।मैंने घबराते हुए पूछा –क्या अब कुछ नहीं हो सकता है ? पंडित नत्थूलाल ने चश्मे को ठीक करते हुए पत्रा पर नज़र गड़ाई और बोले-तुम हमारे पुराने जजमान हो,तुम्हारा तो कल्याण करना ही होगा।हाँ,जो बात पहले एक ताबीज़ पहनने से हो जाती,अब उसी के लिए घर में पूजा करवानी पड़ेगी।मुझे हर हाल में समाधान चाहिए था,इसलिए पूजा के लिए हाँ कर दी।पंडितजी ने इसके लिए मात्र दस हज़ार रूपये वहीँ रखवा लिए।

मैं उनसे मिलकर लौट ही रहा था कि कार्यालय से शर्मा जी का संदेश आया कि आज मंत्री जी का दौरा था और बिना सूचना के कार्यालय से अनुपस्थित रहने पर मुझे सस्पेंड कर दिया गया है।इतना सुनते ही मेरे तो होश उड़ गए।मुझे काली बिल्ली और पंडित नत्थूलाल फिर से याद आने लगे।क्या पता अब पूजा-पाठ के बाद मैं ही मंत्री बन जाऊँ !

कोई टिप्पणी नहीं:

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...