सोमवार, 22 दिसंबर 2014

गायब होते देश में।

उधर फाइल से दो पन्ने गायब हुए और इधर कोहराम मच गया।देश भर में इस पर गहन चिन्तन शुरू हो गया है कि आखिर वे पन्ने गए कहाँ ? ऐसा भी हो सकता है कि फाइल पर पड़े-पड़े वे ऊब गए हों और हवा-पानी के लिए बाहर चले गए हों।इसका मतलब उनके पाँव आ गए हैं पर कुछ लोग कह रहे हैं कि इसमें किसी का हाथ है।यानी सारा मसला पाँव के आने में हाथ का है।अब जांच एजेंसियां इसी बात पर हाथ-पाँव मार रही हैं।सरकार भी शुक्र मना रही है कि अच्छा हुआ कि पूरी फाइल को पाँव नहीं आये, नहीं तो वह पूरी की पूरी अदृश्य हो जाती।तब वह क्या करती ? बहरहाल,सरकार इस बड़े संकट से बच गई है।

पन्नों के गायब होने पर शोर मचना बहुत बचकाना टाइप का मामला लगता है।जहाँ प्लॉट के प्लॉट ,खेत के खेत और कम्पनी की कम्पनी मिनटों में गायब हो जाने का रिकॉर्ड क़ायम हो चुका हो,वहाँ एक फाइल से दो-चार पन्ने गायब होने से कौन-सा पहाड़ टूट गया ?उल्टे यह तो प्रशासन की साख बढ़ाने वाला कृत्य है।अब कार्यालय के अफसरों और बाबुओं के इतने बुरे दिन आ गए हैं कि वे ऐसी छोटी-मोटी गुमशुदगी करने में इतना टाइम ले रहे हैं।सरकार कहती है कि इस तरह के टुटपुंजिये काम में उसका कोई हाथ नहीं है।यह काम तो हाथ वाली सरकार ही कर सकती है।जाते-जाते उसी ने अपने हाथों का सदुपयोग किया होगा।हम तो बस इस पर जांच बिठा सकते हैं और अगर अगले पाँच साल में पन्ने मिल गए तो केस आगे तक भी ले जायेंगे।हम किसी को छोड़ेंगे नहीं।

जांच समिति पूरे मनोयोग से जांच में जुट गई है।उसे बड़ी-बड़ी फाइलों और दस्तावेजों के गुम होने की जांच करने का तगड़ा अनुभव है।इन पन्नों की खोज-खबर मीडिया और जांच समिति के गायब हो जाने तक जारी रहेगी।वैसे भी दो पन्ने गायब हो जाने से अधिक फर्क नहीं पड़ता है।दिन भर में कितने कार्यालयों से कितनी फाइलें गायब हो जाती हैं,क्या इससे कभी कुछ फर्क पड़ा है ?इससे कम से कम यह तो पता चलता है कि हमारे कार्यालयों में फाइलें धूल ही नहीं खाती हैं ,कभी-कभार टहलने भी निकल जाती हैं।ऐसे ही कभी कोयला फाइलें भी टहलने निकल गई थीं,जो आज तक पर्यटन पर ही हैं।हाँ,उनको टहलाने वाले ज़रूर सड़क पर आ गए हैं।

दरअसल,गायब होते समय में इतना कुछ गायब हो रहा है कि किसी फाइल का या कुछ पन्नों का गायब होना मायने नहीं रखता।गायब होते देश में इनका गायब हो जाना बेहद मामूली बात है। जहाँ रोजाना हजारों बच्चे खेल के मैदान और स्कूल से गायब होते जा रहे हों,चुनाव बाद मुद्दे हवा हो गए हों,लोगों के बीच से भरोसा और सरकार से सरोकार गायब होने लगा हो,वहाँ दो-चार पन्नों का गायब होना खबरों में कितनी देर तक टिक पायेगा,सोचना मुश्किल नहीं है।हमें तो उस दिन का इंतजार है,जिस दिन लिखी हुई इबारत से स्याही और दस्तावेज से तहरीर गायब हो जाएगी।

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