बुधवार, 31 अगस्त 2016

कृपया ड्रोन साथ लेकर आएं !

दुनिया के महाबली विदेश मंत्री जॉन कैरी साहब ख़ास गुफ्तगू के लिए भारत दौरे पर आए।एयरपोर्ट से होटल के रास्ते में ही उनकी गाड़ी रुक गई।आगे-पीछे केवल गाड़ियाँ दिख रही थीं।कैरी ने अपने सहयोगी से कहा-मि. मोदी हमारा इतना स्वागत कर रहे हैं।इतना एस्कॉर्ट तो हमारे प्रेसिडेंट के लिए भी नहीं होता।उनसे कहो,हम पाकिस्तान को सबक सिखा देगा पर अब हमें होटल पहुँचने दें।पास बैठे एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि सर यह भारतीय जाम है।कैरी बोले-भई,उन्हें समझाओ।मैं दिन में नहीं पीता।’

एक भारतीय अफसर उनकी बातचीत सुन रहा था।शायद ख़ुफ़िया विभाग का था।उसने डिटेल में समझाना शुरू कर दिया,’सर थोड़ी देर पहले रुक-रुक कर बारिश हो रही थी।आपको रुक-रुक कर ही होटल तक पहुँचना होगा।’

‘तो क्या हमारा स्वागत रुक-रुक कर होगा ?’कैरी से न रहा गया। ‘जी जनाब।जैसे पाकिस्तान की सहायता रोक-रोक कर पूरी दे दी जाती है ,वैसे ही यहाँ स्वागत रिलीज किया जाता है।क्या करें,यह हमारी परिपाटी है।’

आखिर दो घंटे बाद कैरी अपने होटल पहुँच गए।रास्ते में जाम के स्वागत से इतने अभिभूत हो चुके थे कि मुँह से बोल नहीं फूट पा रहे थे।अमेरिका से आई कोई भी कॉल वे अटेंड नहीं कर सके।व्हाइट हाउस में हड़कंप मच गया।तुरत-फुरत ओबामा जी ने मोदी जी से हॉटलाइन पर बात करनी चाही।इधर से संदेश दिया गया कि वे अगली ‘मन की बात’ का एजेंडा तय कर रहे हैं।उन्होंने किसी वरिष्ठ मंत्री से उनकी बात करवाने को कहा।

पर्यटन मंत्री जी वहीँ बैठे सैलानियों के ड्रेस-कोड को सेट कर रहे थे।ओबामा जी से वही मुखातिब हुए।बोले-सर क्या बात है ?ओबामा-हमारे विदेश मंत्री कहाँ हैं?हमें उनकी खबर नहीं मिल रही है।’

बस,इत्ती-सी बात ! अभी हमने भी टीवी पर खबर देखी है।वे दो घंटे तक जाम में थे,अब होटल में आराम कर रहे हैं।’मंत्री ने आश्वस्त किया।


ओह माय गॉड ! पर आपके यहाँ इतना समय जाम में खराब होता है ?


‘सर अगली बार कैरी सर को कहना कि अपने साथ एक ड्रोन कैरी करते आयेंगे।जाम से निपटने में आसानी होगी।’मंत्री ने समाधान प्रस्तुत कर दिया था।

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

पचहत्तर पार का पराक्रम !

वे बड़े मजे से जनसेवा में रत थे।जनता को भी उनसे कोई व्यक्तिगत तकलीफ़ नहीं थी।अपने विरोधियों को मात देकर वे कुर्सी पर काबिज हुए थे और लगातार इस पर बने रहना चाहते थे।उन्होंने किसी के आगे सरेंडर नहीं किया था पर नामुराद कलेंडर ने धोखा दे दिया।अचानक उन्होंने पचहत्तर की ‘फिनिश लाइन’ पार कर ली।विरोधी खुश हुए कि वे ढल गए पर यह उनकी भूल थी।उन्होंने अभी तक अपनी मौलिक प्रतिभा संरक्षित कर रखी थी।वही काम आई।वे फिर से काम पर लग गए मंत्री से लाट-साहब बनकर।इस तरह सरकार ने प्रतिभा-पुंज बुझने से पहले उसमें और तेल डाल दिया।लालबत्ती फिर से भभकने लगी।

प्राचीन समय में हमारे यहाँ व्यवस्था थी कि पचहत्तर पार होते ही व्यक्ति वानप्रस्थ चला जाता था।वो माया-मोह से रहित होकर केवल भजन-कीर्तन में तल्लीन रहता था।र है।सरकार ने उसी से प्रेरित होकर वानप्रस्थ-योजना लागू की है।लाभार्थी इस योजना का स्वागत भी कर रहे हैं।वे सत्ता-भजन के लिए काला-पानी जाने को तैयार हैं।

सरकार की पूरी कोशिश है कि वे ऐसे लोगों का पुनर्वास करे,फिर भी कुछ लोग रह जाते हैं।उनको उम्मीद है कि वे प्रतीक्षा-सूची को नष्ट कर जल्द ‘री-एम्प्लायड’ हो सकेंगे।पचहत्तर पार का राजनेता खूब पका और घुटा हुआ होता है।उसको काम पर न लगाया जाय तो वह कुछ नहीं,बद्दुआ का पराक्रम तो रखता ही है।एक काम करती सरकार बड़े-बूढ़ों को कम से कम आशीर्वाद लायक तो समझती ही है।उनके पुनर्वास से पार्टी और सरकार दोनों का भला होता है।रही बात जनता की,सो वह अपना भला करने के लिए आत्मनिर्भर है ही।

पचहत्तर पार के नेता खुद चलने या सरकार चलाने के काम के भले न हों पर उम्मीद के प्रतीक-पुरुष हैं।सरकार उन्हें ‘लाट-साहब’ बनाकर यह संदेश देने में सफल है कि ‘सरकारी आदमी’ कभी रिटायर नहीं होता।सेवा ही उसका जीवन है।इस कृत्य से उसे यदि वंचित किया गया तो राजनीति वरिष्ठविहीन हो जाएगी।समय गवाह है कि साहित्य और राजनीति में वरिष्ठों ने सबसे अधिक ‘पदक’ बटोरे हैं।इसलिए पचहत्तर पार के लाट साहब जंगल में भी मंगल मना रहे हैं।

बुधवार, 10 अगस्त 2016

प्रधानमंत्री जी से सीधी बात !

प्रिय प्रधानमन्त्री जी,बाइस बार आपने अपने मन की बात की।हमने धैर्यपूर्वक सुनी और कुछ नहीं कहा।फिर अचानक आपने ‘सीधी बात’ की।सच कहूँ,सीधे दिल में घुस गई।उस दिन आप बेहद आहत थे।यह जानकर हम और आहत हो गए।आप हमारी उम्मीद हैं,आशा हैं।एक यही तो चीज़ है,जो हमारे जीवन में बची हुई है।आपके बोलने से यह भी नहीं रही।डंडे और गोली खाकर भी हम हर पाँच साल बाद याद किये जाते हैं।आपने दो साल में ही याद कर लिया,इसके लिए आभारी हैं।

आदरणीय,हम गरीबों के पास गुहार लगाने के सिवा कुछ नहीं है।जब हम चौतरफ़ा निराश-हताश होते हैं,ऊपरवाले के रूप में आपकी ओर देखते हैं।आपको हमने इसीलिए चुना था कि आप हमारी गुहार सुनेंगे,लेकिन यहाँ आपने ही गुहार लगा दी!अर्जुन की तरह सारे शस्त्र रख दिए।गाय के रक्षक जनता के रक्षक से बड़े हो गए।अब हम किसको पुकारेंगे ?आप हमारे भाग्य में लिखी गोली कैसे खा सकते हैं ! हमें तो सड़क,अस्पताल और चुनाव में गोली खाने की पुरानी आदत है।शोषक की गोली हमेशा शोषित को लगती है,शासक को नहीं।यह चलन और नियमविरुद्ध है।

प्रधानमंत्री जी,कुछ लोग जहाँ आपकी बातों के क़ायल हैं तो वहीँ कुछ अनावश्यक रूप से घायल भी।आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं है।आपकी इस प्रतिभा की मारक-क्षमता अद्भुत है।इससे दूसरे ही नहीं अब अपने भी झुलस रहे हैं।


चाय-चर्चा से शुरू आपका सफर अब गाय-चर्चा तक आ चुका है।आपने अस्सी और बीस का ऐसा आंकड़ा जारी कर दिया है कि गौ-रक्षक लाठी-डंडा छोड़कर इसी भूल-भुलैया में खो गए हैं।जनसेवक की तरह गौ-सेवक भी अपने दल को लेकर उदार है।वह सेवा के लिए कभी भी इधर-उधर शिफ्ट हो सकता है।

हमें उम्मीद है कि ‘सीधी बात’ का सीक्वल भी आप जल्द बनायेंगे।एक-एक करके देश की सभी समस्याओं को अपनी बातों की मिसाइल से 'सुपर-हिट' कर देंगे।देश के बदलने का जायका इसी से मिलता है कि ‘मन की बात’ अब बासी कढ़ी हो चुकी है।अगले तीन साल आप ‘सीधी बात’ के हलुवे का भोग लगाते रहें,हमारे जैसे मतदाता को आस बनी रहेगी।और हाँ,तब तक हमारे मनोरथों को पूरा करने के लिए ‘ऊपरवाला’ है ही।

प्रधानमंत्री जी,आपको धन्यवाद कि आपको हमारी सुध आई।मगर कहे देता हूँ कि आपको हमारे लिए जान देने की कउनो ज़रूरत नाहीं है।इसमें तो पहिले ही जंग लग चुकी है।आप अपनी कोई जंग न हारें,ऐसी कामना के साथ।


आपका ही धर्म भाई

शनिवार, 6 अगस्त 2016

मेरे ख़िलाफ़ साज़िश है यह !

जैसे ही मंत्री जी के बंगले के दरवाजे पर पहुँचा,दरबान कुत्ता लेकर मेरे ऊपर टूट पड़ा।मैंने डरते-सहमते पूछ ही लिया कि भई,मुझ को कटवाने का इरादा है क्या ? जनसेवक के सेवक ने तुरंत उत्तर दिया,’नहीं साहब,यह केवल सूँघता है,काटता नहीं।’ राहत पाकर मैंने फिर सवाल किया,’मैं पत्रकार हूँ।खबर सूँघने का काम तो मेरा है,यह क्या सूँघता है ?’

इस बीच वह कुत्ता मेरे इर्द-गिर्द दो चक्कर लगा चुका था।मेरे सवाल पर दरबान ने जवाब दिया,’साज़िश और क्या ! हमें सख्त निर्देश हैं कि कोई भी चीज़ साज़िश हो सकती है।आप जानते ही होंगे कि कुत्ते साज़िश सूँघने में माहिर होते हैं।बस इसीलिए यह सब करना पड़ता है।’

‘मगर हमने तो सुना है कि मंत्री जी भी खूब सूँघ लेते हैं।उनकी घ्राण-शक्ति इतनी प्रबल है कि कोसों दूर हुई वारदात मिनटों में उनके नथुनों में प्रवेश कर जाती है।ऐसे में इस कुत्ते की क्या ज़रूरत ? यह तो फिर भी पास से ही सूँघ सकता है।’ मैंने अपने आने का प्रयोजन स्पष्ट कर दिया।दरबान मुझसे अधिक समझदार निकला।उसने झट-से प्रवेश-द्वार खोल दिया।

अंदर जाकर कुछ सूँघता कि मंत्री जी आते दिखाई दिए।मुझे देखते ही बोल पड़े,’भई,तुम लोगों ने मेरी बात का बतंगड़ बना दिया।इसमें विपक्षियों की साज़िश है।’ मैंने पलटकर मंत्री जी से पूछा,’ अगर प्रदेश में जो-जो हो रहा है,सब विपक्ष की साज़िश है,तो क्या आपका बयान भी विपक्ष की साज़िश का हिस्सा है ?’ अब वो चौंके।मुझसे ही पूछ बैठे,’यह कैसे हो सकता है भला ? मैं तो सत्ता-पक्ष में हूँ।इससे तो मुझे ही नुकसान होगा।’

‘बिलकुल ठीक समझे।आपकी सूँघने की इतनी अधिक क्षमता पार्टी को नुकसान पहुँचा रही है।यही काम तो विपक्ष का है तो क्यों न इसे साजिश माना जाए ?’मैंने मियाँ की जूती मियाँ के सर वाली कहावत यहाँ लागू कर दी।सारे अख़बारों की कतरनें उनके आगे फेंक दी।

मंत्री जी सोफे पर पसर गए।कहने लगे-हमारे खिलाफ़ बड़ी साज़िश हुई है।मैंने पूछ ही लिया,’किसकी हो सकती है ?’

‘मीडिया की,और किसकी ?’ मंत्री जी ने गहरी साँस लेते हुए कहा।

मुझे नई खबर मिल गई थी,पर सच इसमें कोई साज़िश न थी।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

जाम से रुके लोग और आगे बढ़ता देश !

मानसून का सीजन है।राजधानी में संसद चल रही है,पर पड़ोस में जाम लग गया।लोग बीस घंटे तक रुके रहे पर देश नहीं रुका।कुछ लोग अक्सर पीछे रह जाते हैं।जो आगे बढ़ गए,वे मँहगाई का पीछा कर रहे हैं।वह और आगे बढ़ गई है।यह कोई नई बात नहीं।हर सीज़न में ऐसा होता है।यह बात सीजन को नहीं पता कि देश बदल रहा है नहीं तो वह भी बदल जाता।जाम में फँसे लोगों को भी पता है कि देश बदल रहा है पर मुए जाम को कौन बताये ? जहाँ देखो,वहीँ ठिठक जाता है।

जाम को लेकर खूब हंगामा हो रहा है।कहा जा रहा है कि इससे करोड़ों रुपए स्वाहा हो गए।पर दूसरे पहलू पर किसी की नज़र ही नहीं गई।घंटों जाम में फँसे लोगों ने देश की अर्थव्यवस्था को अपना मजबूत कंधा दिया।यह किसी को नहीं दिखा।बीस रुपए वाली पानी की बोतल सौ रुपए में और दस रुपए का बिस्कुट पचास में धड़ल्ले से बिक गया।आखिर इत्ता सारा मुनाफ़ा देश की जेब में ही तो गया।कभी-कभी तो मौक़ा मिलता है,ऐसे लोगों को जो एक का दो और दो का चार बनाते हैं।वर्ना ये काम तो केवल बड़े जमाखोर ही कर पाते हैं।जाम ने इस बहाने नए अवसर पैदा किए।


जो लोग समय न होने का रोना रोते हैं और बड़ी जल्दी में रहते हैं,उनके लिए भी यह जाम एक मौक़ा था।लोग घंटों काम से दूर रह पाए,यह बड़ी बात है।लोगों को घर की याद आई,बच्चों से बातें की और अपने भूले-बिसरे दोस्तों को याद किया।कुछ लोगों ने अपनी रचनात्मकता के लिए भी समय निकाल लिया।इस जाम में कई कविताओं ने जन्म लिया।जहाँ पर आवासीय प्लॉट की भारी माँग रहती है,वहाँ कुछ देर के लिए ही सही,जेहन में कहानियों के प्लॉट आये।हो सकता है आगे चलकर बॉलीवुड वाले इस प्लॉट पर ‘वो बीस घंटे’ नाम से फिल्म बना डालें।जब इस जाम से लोग इत्ता ‘हिट’ हो सकते हैं तो फिल्म तो सुपरहिट होगी ही।

ऐसा नहीं है कि जाम के लिए केवल बारिश का पानी ही उपयोगी है।दस-दिनी कांवड़-यात्रा भी इसमें अपना भरपूर योगदान करती है।इसमें लाठी-डंडे जैसे क्रियात्मक प्रयोग आसानी से देखे जा सकते हैं।इस दौरान सामान्य जन-जीवन और करोड़ों का व्यापार पानी भरता है।शुक्र है कि इससे हमारी आस्था निर्विघ्न चलती रहती है।जाम में फँसे लोग फर्राटे-भरते राजमार्गों पर सामूहिक बलात्कारों से सुरक्षित रहते हैं,यह क्या कम उपलब्धि है ?

चुनावी-दौरे पर नेताजी

मेरे पड़ोस में एक बड़का नेताजी रहते हैं।आमतौर पर उनकी हरकतें सामान्य नहीं होती हैं पर जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई , उनकी...