रविवार, 27 मई 2018

जश्न के मौक़े पर ‘विश्वासघात’ !

देश भर में चौतरफ़ा जश्न का माहौल है।बहुत दिनों बाद ऐसा संयोग आया,जब पक्ष-विपक्ष दोनों ख़ुश दिखे।इससे भी बड़ी बात यह कि ऐसा मौक़ा दोनों पक्षों को बिना कुछ किए मिला है।संयोग से सत्ता-पक्ष के चार साल बीत गए।वह इसे अड़तालीस महीने समझकर ख़ुश है।उसके लिए विकास की यह लम्बी यात्रा काफ़ी महत्वपूर्ण है।उसके पास अगले बारह महीने तो हैं ही,उससे अगले साठ महीने भी वह विपक्ष को ‘भरतनाट्यम’ करवाने की जुगत में लगा है।विपक्ष इसलिए प्रसन्न है कि उसके दुर्दिन समाप्त होने में केवल एक साल बचा है।लगातार कई हारों के बाद उसे कहीं-कहीं जीत नसीब होने लगी है।चार साल घोड़े बेचकर सोने के बाद आख़िरकार उसे गठबंधन की ‘पवित्रता’ पर भरोसा हुआ।सत्ता की गठरी खुलने के लिए उसने आपस की सारी गाँठे खोल दी हैं।इसलिए वह भी गदगद है।

कुल मिलाकर देश के सभी सभ्य नागरिक सुखी और प्रसन्न हैं।यह इसलिए भी मुमकिन हुआ क्योंकि हमारे सभी रहनुमा ख़ुश हैं।कुछ असभ्य और नासमझ नागरिक ज़रूर हैं,जो इस ऐतिहासिक जश्न पर ‘पेट्रोल’ छिड़कना चाहते हैं।जो पढ़े-लिखे और समझदार लोग हैं वे तेल के शतक लगाने की बाट जोह रहे हैं।वे तभी जश्न मनाएँगे।सरकार के समर्थक तेल से होने वाले नुक़सान गिना रहे हैं।इससे होने वाला प्रदूषण सड़क से निकलकर सोशल मीडिया तक फैल गया है।सारा तापमान उसी का है।तेल को इसलिए छुट्टा छोड़ा गया है ताकि इस जश्न के माहौल में कम्पनियों के कुएँ भी लबालब हो सकें।

इस जश्न का ज़मीनी जायज़ा लेने के लिए अपुन भी पूरी तरह तैयार हो गए।घर से बाहर निकलकर देखा तो आँखें रोशनी से चौंधिया उठीं।राजधानी में जगह-जगह जश्न की प्रदर्शनी लगी हुई थी।सबसे ज़्यादा उल्लास ‘चार साल बेमिसाल’ वाले स्टॉल पर दिखा।जितनी जगह थी,बैनर उससे ज़्यादा टँगे थे।लग रहा था कि जगह और होती तो विकास और दिखता।बहरहाल,स्टॉल के संचालक सामने ही दिख गए।बिलकुल फ़िट लग रहे थे।जवाब देने के मूड में थे।हमने कहा- इससे हमारा काम बहुत हल्का हो गया है।अब हम आराम से बात कर सकते हैं।वे ‘पुश-अप’ करते हुए बोले,‘तुम्हारा काम भले हल्का हो,हम कभी हल्का काम नहीं करते।जो भी पूछना है जल्दी पूछिए,हमें जश्न मनाना है।’

‘किस बात का जश्न मना रहे हैं आप ? हम यही तो जानने आए हैं।’ हम सीधे मुद्दे पर आ गए।

वे ज़ोर से हँसे।कहने लगे-‘जनता पूरी तरह हमारे साथ है।वह पिछले अड़तालीस महीनों से हमारे आश्वासन पर जीवित है।इसका भरपूर स्टॉक हमारे पास है।हम तो इतने उदार हैं कि विरोधियों को भी समुचित मात्रा में आश्वासन बाँट रहे हैं,पर उन्हें शासन चाहिए।इसलिए वे जनता को बाँट रहे हैं।हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं है।हमने जश्न की पुड़िया बनाई है,एकाध तुम भी लेते जाना।सवाल पूछना भूलकर जश्न मनाने लगोगे।’ इतना कहकर उन्होंने एक पुड़िया हमारी ओर बढ़ा दी।

पुड़िया लेने से पहले ही हम सवाल हलक से नीचे उतार चुके थे-‘सुना है तेल के दामों को लेकर जनता में भारी असंतोष है।दाम इतना बढ़ क्यों रहे हैं ?’ हमारा प्रश्न सुनकर उँगली से ग्राफ़ बनाते हुए वे समझाने लगे-हम चाहते हैं कि तेल की खपत कम हो।इससे ऊर्जा बचेगी।जनता के पास यह ऊर्जा संचित रहेगी तो अगली बार फिर हमारी सरकार बनेगी।इससे हमें ऊर्जा मिलेगी।हम और अधिक ऊर्जा से काम करेंगे।तेल जनता की पहुँच से जितना दूर होगा,पर्यावरण उतना ही शुद्ध होगा।इसीलिए हम जनता का बचा-खुचा तेल भी निकाल रहे हैं।तुम भी देशहित में सवाल पूछकर अपनी ऊर्जा नष्ट न करो,आगे बढ़ो।

हम उनका मंतव्य समझकर आगे बढ़ गए।सड़क के बीचोंबीच विपक्ष के प्रतिनिधि तेल छिड़क रहे थे।हमने सुलगता हुआ सवाल पूछ लिया,‘देश इस समय पूरी तरह जश्न की चपेट में है।आप किस बात का जश्न मना रहे हैं ?’ वे चिंगारी से भड़क उठे-आप किस मीडिया से हैं? मुख्यधारा की मीडिया से होते तो आपको दिखता कि हम जश्न नहीं ‘विश्वासघात दिवस’ मना रहे हैं।यह सरकार सत्ता से तो पहले ही हमें बेदख़ल कर चुकी है,अब हम जैसे ‘बंगला-पकड़’ को बेघर करने पर भी तुली है।तेल देखो,तेल की धार देखो।असल आग तो सरकार ने हमारे बंगलों में लगाई है।लेकिन तुम्हें केवल तेल दिख रहा है,उसकी धार नहीं।आम आदमी तो एकबारगी बिना रोटी,कपड़े और मकान के रह लेगा,इसका उसे ख़ासा अभ्यास भी है पर उसका सेवक अगर सड़क पर आ जाए तो यह जनतंत्र के साथ विश्वासघात नहीं तो और क्या है ?’

‘तो क्या यह जश्न आपको सड़क पर लाने के लिए मनाया जा रहा है ?’ हमने कमज़ोर नस धीरे से दबा दी।वे सुबक पड़े।कहने लगे,‘इस बंगले से हमारी यादें जुड़ी हैं।यह हमारी जश्नगाह है।बहुत सारे जश्न हमने यहीं निपटाए हैं।हमारे वोटर को भी हमारा यही पता मालूम है।सरकार हमें लापता करना चाहती है ताकि हम पूरी तरह मुक्त हो जाएँ।यह घोर विश्वासघात है।’

तभी हमारी निगाह जगमगाते स्टॉल के पीछे पड़ी।एलियन जैसा दिखने वाला आम आदमी बड़े निस्पृह भाव से आसमान के तारे गिन रहा था।हम बेहद सतर्कता से जश्न की हद में लौट आए।

संतोष त्रिवेदी

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